Dr. Arun Kumar Sen Ka Sangitik Yogdan
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-छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े क्षेत्र राजिम में जन्म लेकर स्व.डॉ. अरुण कुमार सेन ने इस प्रदेश के लोगों में शास्त्रीय संगीत के प्रत्ति रूचि जागृत करने हेतु अपना सारा जीवन एक कर्मयोगी की तरह अपने परिश्रम से सींचा। डॉ. सेन ने संगीत के युग पुरूष पं. विष्णु नारायण भातखण्डे के पद चिन्हों पर अग्रसर होते हुए छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धानी रायपुर में भातखण्डे ललित कला शिक्षा समिति का गठन कर इसके अंतर्गत कमलादेवी संगीत महाविद्यालय की स्थापना सन् 1950 में की, जो इस अंचल में मील का पत्थर बना। शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ संगीत के प्रचार-प्रसार कर इस क्षेत्र के लोगों में अतुलनीय भूमिका स्थापित की। संगीत के साथ-साथ नारी शिक्षा को भी ध्यान में रखते हुए उन्होंने कन्या शाला व महिला महाविद्यालय की स्थापना की। डॉ. सेन का सारा जीवन संगीत की सेवा एवं विकास और उसके प्रचार-प्रसार में हुआ। डॉ. सेन कई उच्च प्रशासनिक पदों पर आसीन थे। उन्हें शास्त्रीय रागों व संगीत शास्त्र का विषद् ज्ञान था। उनका शोध ग्रंथ 'भारतीय तालों का शास्त्रीय विवेचन" एवं "ताल ग्रंथ" इसके संगीत विषयक विचारों को स्थापित करने में अद्वितीय हैं। वे एक कुशल गायक एवं कवि भी थे। आकाशवाणी व दूरदर्शन के "ए" ग्रेड के कलाकार थे। उनके द्वारा रचित व स्वरबद्ध किया गया गीत रामायण, गीत गाँधी, गीत नानक, गीत महावीर, गीत विवेकानंद साथ ही छत्तीसगढ़ी गीतों की रचना से उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति भी प्राप्त हुई। वे एक सधे हुए वक्ता थे। अपने भाषण के दौरान प्रस्तुत विषयों पर बारीकी से अध्ययन, विश्लेषण प्रस्तुत किया करते थे, जो अत्यंत मृदुल लगता था, इन्हीं सभी बहुमुखी प्रत
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