Kathak Nirtya Parampara Mein Raigarh Darbar
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-भारतीय ललित कलाओं के संरक्षण संवर्धन में राज दरबारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। दरबारों में कलाकारों को संरक्षण तो मिला साथ ही साथ संगीत एवं नृत्य कला की लोकप्रियता एवं समृद्धि के लिए अनेक शोध परक प्रयोग भी हुए। छत्तीसगढ़ प्रांत के रायगढ़ नरेश चक्रधर सिंह, जिनको संगीत के प्रति लगाव विरासत में मिला था। सन् 1924 में राज्य सिंहासन में बैठे और संगीत नृत्य जगत में एक क्रांति आ गई। "कत्थक नृत्य भावहीन होकर कहीं एक मशीनी हरकत न रह जाये और नृत्य का अर्थ यदि अंगविक्षेप ही है तो निश्चित ही अपना अस्तित्व खो बैठेगा।" ऐसे विचारों से अभिप्रेरित राजा साहब ने कत्थक नृत्य के इतिहास में कई नये आयाम जोडे । दरबार के महान संगीतज्ञों, नर्तकों एवं साहित्यकारों के साथ गहन चिंतन कर अपनी अद्वितीय बौद्धिक क्षमता से अनेक ग्रंथो की रचना की। वर्तमान में ये ग्रंथ जन सामान्य को उपलब्ध नहीं है किन्तु कुछ प्रकाशित तथा अप्रकाशित उपलब्ध रचनाओं का संग्रह कर नृत्य प्रदर्शन की दृष्टि से मेरे गुरू स्व. प्रो. पी. डी. आशीर्वादम् से प्राप्त शिक्षानुसार इस पुस्तक में विवेचना की गई है। विषय की आवश्यकता के अनुसार इसमें रायगढ़ रियासत की जानकारी के साथ-साथ दरबार के गुरूओं और कलाकारों का भी संक्षिप्त परिचय दिया गया है। रायगढ़ दरबार की अलौकिक लेखन क्षमता को आगे बढ़ाते हुए वहां के अन्य कलाकारों की रचनाओं का भी उल्लेख किया गया है। इस लेखन रचना का मूल उद्देश्य ऐसे महान राजा को केवल मेरी हार्दिक श्रद्धांजली है जिनके समुद्र रूपी अथाह योगदान से कत्थक जगत कभी उऋण नही हो सकता।
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