Suswaraalee (Hindi): Pratyakshiko Ki
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-भारतीय कला संगीत में बंदिश का अपना अलग स्थान और विशिष्ट भूमिका है। संगीत सामग्री का वह एक अहम् हिस्सा है। बंदिश की रचना के लिए कई बातों की आवश्यकता होती हैं सुर, लय, राग, ताल तथा घाट (विशिष्ट संगीत प्रकार) का पूर्ण ज्ञान, साहित्य में रूचि, शब्दों के प्रति प्रेम, परंपरा और नवीनता को जोड़ने की क्षमता, स्वतंत्र शैली, आदि। इसके साथ कुछ और बातें हैं जैसे राग-नाम तथा समय के अनुसार काव्य-विषय, शब्दों का नियोजन, एक ही राग के विलंबित तथा द्रुत बंदिश के काव्य विषय में पूरक भाव जिससे राग भाव गहरा होता है और बंदिश का असर बढ़ता है। डॉ. प्रभा अत्रे की बंदिशों में यह सारी विशेषताएँ दिखाई देती हैं। सामान्य से लेकर जानकार श्रोता, संगीत के विद्यार्थी और कलाकार सभी उनकी बंदिशों को सराहते हैं। एक स्त्री की संगीत चेतना व संवेदना का परिचय कराने वाली पुस्तकें नहीं के बराबर हैं। प्रभाजी की पुस्तक इस दिशा में एक सार्थक प्रयास है। इस पुस्तक में प्रातः, मध्यान्ह, एवं सायं गेय रागों में ख़्याल, तराना, चतुरंग 42 रागों में 164 रचनाएँ हैं जिसमें आपके द्वारा निर्मित राग तिलंग भैरव, कौशिक भैरव, रवि भैरव, कलाहीर, शिवकली, शिवानी, भीमवंती की बंदिशें, और उन रागों के आलाप, तानें भी उदाहरण स्वरूप सम्मिलित हैं। संगीत प्रेमी और विद्यार्थियों की सुविधा के लिए बंदिशों की स्वरलिपि और सी. डी. भी पुस्तकों के साथ संलग्न है।
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